मशहूर टीवी शो तारक मेहता का उल्टा चश्मा जो की सालो से दर्शको के दिलो पर राज करता आ रहा है बता दे की इस शो को शुरू से ही बहुत पसंद किया जाता है इस शो में काम करने वाले हर कैरेकेटर्स को खूब लोकप्रियता मिलती आ रही है शो के हर किरदार को बहुत ह ज़्यदा पसंद किया जाता है आज हम आपसे शो में पोपटलाल के किरदार में नजर आने वाले एक्टर श्याम पाठक के जीवन के बारें में बात करने जा रहे है जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी में बहुत ही बुरा वक़्त देखा है।
एक्टर श्याम पाठक के निजी जीवन के बारें में किसी को भी इतनी जानकरी नहीं है मगर यह सच्ची है की उनकी ज़िन्दगी शो में आयने से पहले बहुत ही ज़्यदा मुश्किल हुआ करती थी उन्होंने एक वक़्त में सेल्समैन की नौकरी भी की थी श्याम पाठक ने अपने जीवन के 25 साल गरीबी में गुजारे यह बात हमको खुद श्याम ने बताई थी की ”बचपन में वो एक बाल संस्कार कार्यक्रम में जाया करते थे, जहां सालाना एक नाटक किया जाता था. जहां मुझे मेन रोल के लिए सिलेक्ट किया जाता था. मैं 6-7 साल का था, लोग मेरे लिए तालियां बजाते थे, मेरी एक्टिंग की खूब तारीफ करते थे. वहीं से मेरे अंदर ये बात घर कर गई थी. मेरे अंदर तभी से ये सपना पल रहा था कि मैं एक्टर बनूं ”
उन्होंने आगे कहा ”स्कूल में तो मैं काफी एक्टिव था ही, स्कूल को रिप्रेजेंट भी करता था. लेकिन कॉलेज तक आते-आते मुझे पढ़ाई के साथ साथ जॉब करनी पड़ी. मेरे घर की हालत ठीक नहीं थी, खर्चा चलाने के लिए कमाना जरूरी था. तो मैंने एक कपड़े की दुकान में सेल्समैन की जॉब पकड़ी. मैंने और भी कई तरह के काम किए लेकिन सेल्समैन के तौर पर जो काम किया वहां बहुत सराहना मिलती थी. वहां के मालिक ने एक रूल बनाया था कि जो भी कस्टमर आएगा सबसे पहले मैं अटेंड करूंगा. कभी-कभी बहुत शर्मिंदगी भी होती थी, क्योंकि कॉलेज की कई लड़कियां अपनी मम्मी के साथ आती थीं, तो मुझे वहां काम करते देखती थीं। मेरी मां चाहती थी कि मैं चार्टेड अकाउंटेंट बनूं. मैंने उसकी तैयारी भी की. लेकिन मन में कहीं ना कहीं वो एक्टर बनने की ख्वाहिश बाकी थी. मैं अपने काम सेसे इनकम टैक्स ऑफिस जाता था, तब वहां बगल में नेशनल सेंटर ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स का बोर्ड देखा, तो बड़ी हिम्मत कर के अंदर गया और सालाना 25 रुपये का सब्सक्रिप्शन लिया. मेरा सपना फिर से उड़ान भरने लगा था. ”
श्याम पाठक ने कहा ” मैं ऐसे समाज से आता हूं, जहां अगर मैं ये कहूं कि मुझे एक्टर बनना है तो लोग हंसेंगे. मुझसे कहा जाएगा कि जॉब कर, शादी कर और सेटल हो जा. कहां इन चक्करों में पड़ रहा है. लेकिन पता नहीं कैसे मेरे अंदर इतनी हिम्मत आ रही थी कि मैं किसी को बिना बताए आर्ट्स लाइब्रेरी जाता था, जहां मेरी मुलाकात थियेटर के लोगों से हुई. मेरे पास थियेटर देखने के पैसे नहीं होते थे, तो रिक्वेस्ट करने पर बैक स्टेज देखने का मौका मिलता था. जहां से मेरी जान पहचान शुरू हुई और पृथ्वी थियेटर के एक वर्कशॉप का पता चला. मेरे सीए के फाइनल एग्जाम नजदीक थे, लेकिन पढ़ाई में मन नहीं लगता था. आखिरी पेपर देकर मैं तुरंत वहां गया और और राजा की रसोई नाटक में एक नैरेटर का रोल मिला. जो भी हुआ वो मेरे विश्वास से परे था. मुझे आज भी यकीन नहीं होता कि कहां मैं एक लोवर मिडल क्लास फैमिली, चॉल में रहने वाला लड़का, और मैं पृथ्वी थियेटर थियेटर में परफॉर्म कर रहा था. उस ग्लैमर वर्ल्ड को तो हम जानते हैं, लेकिन उसके पीछे कितनी मेहनत लगती है, ये समझना बहुत मुश्किल है. मैंने स्क्रेच से से अपने करियर की शुरुआत की है. थियेटर्स में नाम जमाने के बाद मैंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में भी एडमिशन लिया. फिर मैंने प्रोफेशनल लेवल पर एक्टिंग करनी शुरू की. मेरे मम्मी-पापा राजी नहीं थे, लेकिन मैंने उन्हें मनाया. मेरे पास कोई गॉडफादर नहीं थे, मेरे पास सिर्फ मेरी मेहनत थी.”