एक जज जिनका नाम उपेंद्र नाथ राजखोवा था जिन्होंने अपनी ही तीन बेटियाँ और पत्नी का कत्ल कर दिया था और वो जिस सरकारी घर में रहती थी उन्होंने वो भी खाली कर दिया था और वह से कई चले गए थे।उपेंद्र का साला पुलिस वाला था और वह अपनी बहन या भांजियों को ढूंढने निकल पड़ा था उन्हें उपेंद्र का पता भी लगाया और गिरफ्तार किया गया।
पुलिस की पूछताछ में उसने कबूल किया कि उसने ही अपनी पत्नी और बेटियों को जान से मारा था जिसके बाद कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई और फांसी की सजा से बचने के लिए हाई कोर्ट में अपील की पर हाईकोर्ट ने भी निचली की अदालत का फैसला बरकरार रखा पर उपेंद्र ने एक बार फिर दोबारा सुप्रीम कोर्ट से अपील की मगर सुप्रीम कोर्ट ने भी दोनों अदालत का फैसला नहीं बदला।
कोर्ट से हर माने के बाद उन्होंने राष्ट्रपति से भी अपील की पर राष्ट्रपति ने भी चार खून के इल्जाम में कुछ नहीं किया।उपेंद्र को फांसी की सजा हुई थी वैसे तो उन्होंने यह बात अच्छे से कबूल कि के उन्होंने ही अपनी पत्नी और बेटियों का कत्ल किया है पर इसकी क्या वजह थी उन्होंने इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताया।
जोरहाट जेल में 14 फरवरी 1976 में फांसी पर लटकाया गया आपको बता दे की वह भारत के अभी तक के अकेले जज थे जिनको हत्या के आरोप में फांसी पर लटकाया गया और किसी जज को हत्या के जुर्म में फांसी पर नहीं लटकाया गया।इस सब के बाद बंगले में कोई नहीं रहता उसे भूत बंगला कहा जाता था। इसी बात को नजर में रखते हुए उसे तोड़ा गया और एक नया कोर्ट बनाया गया।