सुरक्षा व्यवस्था में तैनात जब दो डीएसपी सड़क एक भिखारी को जो की ठंड से ठिठुर रहे होता है और खाने के लिए कचरे में कुछ ढूंढ रहा था जिसे देखकर एक अधिकारी जूते और दूसरा अपनी जैकेट उस भिखारी को दे देता है और जब दोनों डीएसपी वह से जा रहे होते है तो तभी भिखारी उनसे उनके नमो से पुकाराता है जिसे सुनकर दोनों हो हैरान हो जाता है और पलट कर जब ध्यान से उसे देखते है तो वो उसे भिखारी को पहचान लेते है।
भिखारी कोई और नहीं बल्कि उनके साथ के बेच का सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा था और वो पुरे 10 साल से सड़कों पर लावारिस हाल में घूम रहा था मनीष अपना मानसिक संतुलन खो बैठे थे पहले तो वो 5 सालो तक अपने घर में रुके इसके साथ ही इलाज के लिए जिन सेंटर व आश्रम में भर्ती कराया वहां से भी भाग गए थे जिसके बाद एक भिखारी की तरह भीख मांग कर जैसे तैसे जीने लगे थे।
बता दे की मनीष साल 1999 पुलिस बीच के अचूक निशानेबाज थानेदार थे और वो दोनों ऑफिसर्स के साथ साल 1999 में पुलिस सब इंस्पेक्टर के रूप में भारती हुए थे।डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय भदोरिया ने मनीष के साथ अपने पुराने दिनों को याद किया और उसे अपने साथ ले जाने की ज़िद की पर वो साथ जाने को राजी नहीं हुआ जिसके बाद समाज सेवी संस्था आई और उसे आश्रम भिजवा दिया गया।
वैसे बात करे मनीष के परिवार के बारे में तो उनके परिवार में उनके भाई है जो की टीआई है और उनके पिता और उनके चाचा एडिशनल एसपी से रिटायर हुए हैं।उनकी चचेरी बहन दूतावास में पदस्थ है ,मनीष द्वारा खुद 2005 तक नौकरी की गई है आखिर के दिनों में वो दतिया जिले में पदस्थ रहे इसके बाद मानसिक संतुलन खो बैठे थे।
ऐसा माना जाता है की पत्नी से उनका तलाक हो चुका है जो न्यायिक सेवा में पदस्थ है इस घटनाक्रम से जितने यह अधिकारी हैरान हुए उतने लोग भी हैरान हो रहे है पर सभी को ख़ुशी इस बात की थी अब मनीष उनका दोस्त ग्वालियर के एक सामाजिक आश्रम में रह रही है और उनका इलाज किया जा रहा है।